सीमा एक रेखा ही नही! एक परिभाषा भी है! सीमा हर किसी की होती है! प्रेम की, धैर्य की, मित्रता की, और शत्रुता कि भी…
और जो सदैव सीमा में बंधें रहते है वह सामान्य मनुष्य बन कर रह जाते है! परंतु जो समय आने पर सीमा तोड देते है वही भविष्य बनाते है!
क्योंकीं सीमा आपको केवळ मर्यादा में नही रखती है..
आप को बांधती भी है… तब यह आप पर, मुझ पर, हम सब पर निर्भर करता है की कौन सी कौंन सी सीमा है आपको बांधती है!
और कौन सी सीमा शक्ती के नऐ मार्ग समक्ष लाती है!
इसीलिए सिमाएं तोंडो…
जो कर सकते हो उससे अधिक करने का प्रयास करो…
तभी नई सिमाएँ बना पाओगे….
कु.रमेश शं.पवार (पंढरपूर)
मुख्यसंपादक